Description
Pilo Soft Capsules – An Ayurvedic medicine for Piles/Fissure/Fistula (बवासीर / पाइल्स, फ़िस्सर व फिस्टुला / भगन्दर का 100% आयुर्वेदिक इलाज)
पैक डिटेल: पिलो सॉफ्ट कैप्सूल्स के 2 डिब्बी-टोटल 120 कैप्सूल्स (एक डिब्बी में 60 कैप्सूल्स हैं) + डाइट चार्ट
दवा लेने का तरीका: 2 कैप्सूल सुबह और 2 कैप्सूल रात में खाली पेट गुनगुने पानी से लें, या फिजिशियन के निर्देशानुसार
बवासीर या पाइल्स एक ऐसी बीमारी है जिसमें एनस के अंदर और बाहरी हिस्से की शिराओं में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से गुदा के अंदरूनी हिस्से में या बाहर के हिस्से में कुछ मस्से जैसे बन जाते हैं, जिनमें से कई बार खून निकलता है और दर्द भी होता है। कभी-कभी जोर लगाने पर ये मस्से बाहर की ओर आ जाते है। अगर परिवार में किसी को ऐसी समस्या रही है तो आगे की जेनरेशन में इसके पाए जाने की आशंका बनी रहती है।
पाइल्स और फिशर का फर्क : कई बार पाइल्स और फिशर में लोग कंफ्यूज हो जाते हैं। फिशर भी गुदा का ही रोग है, लेकिन इसमें गुदा में क्रैक हो जाता है। यह क्रैक छोटा सा भी हो सकता है और इतना बड़ा भी कि इससे खून आने लगता है।
फिस्टुला ( भगन्दर ) क्या होता है: भगंदर एक ऐसा रोग है जिसमें किसी दो अंगों या नसों के बीच जोड़ बन जाता है। जैसे जैसे यह जोड़ खाली होता है इसमें पस और खून भी भर जाता हैं। देखा जाए तो भगंदर की समस्या व्यक्ति के एनस के रास्ते वाली जगह पर होती है। इस अवस्था में व्यक्ति के आंत का आखिरी हिस्सा एनस के पास की स्किन से जुड़ जाता है।
ज्यादातर मामलों में गुदा मार्ग में पहले से बने पस की वजह से भगंदर होता है। जब पस बाहर निकलने के लिए रास्ता बनाता है तो गुदा मार्ग और स्किन के बीच एक नली बन जाती है। जब नली खुद को हील नहीं कर पाती है और खुली रह जाती है तो भगंदर की समस्या सामने आती है।
यह दवा कैसे काम करती है?
एंटी इंफ्लेमेटरी, लेक्सेटिव और एनाल्जेसिक गुणों की वजह से यह दवा सभी तरह के पाइल्स (खूनी व बादी बवासीर), फिसर, मस्से, भगन्दर (फिस्टुला) में पूरी तरह से असरकारी है। यह समस्या के लक्षणों जैसे की ब्लीडिंग (खून आना), दर्द, सूजन, जलन, खुजली, और बेचैनी आदि पर पूरी तरह से कारगर है और समस्या को धीरे-धीरे जड़ से खत्म करने में मदद करती है।
पिलो सॉफ्ट कैप्सूल्स की विशेषताएं:
- बवासीर / पाइल्स, फ़िस्सर व फिस्टुला / भगन्दर का 100% आयुर्वेदिक इलाज
- भगन्दर या फिस्टुला के केस में 1 महीने में पस या मवाद आना रुक जाता है और 3 महीने में पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
- आयुष द्वारा प्रमाणित औषधि
- खुनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में आराम
- दर्द, जलन, सूजन में जल्द आराम
- कब्ज से आराम
- 3 दिनों में आराम मिलना शुरू
- 90 दिनों में पूर्ण आराम (कुछ केसेस में 3 से 6 महीने तक समय लग सकता है)
- दुर्लभ जड़ी बूटियों का समावेश
- प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति और मॉडर्न साइंस द्वारा तैयार
- कई जरुरी परीक्षण और अनुभवी विषेशज्ञों की देखरेख में तैयार
- कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं
पिलो सॉफ्ट कैप्सूल आयुर्वेद का एक ऐसा वरदान है जिसमें अशोक, कांचनार, नागकेशर, जीवन्ति, लाजवंती, बकायन, निम्बोली, गोरखमुंडी, दारुहल्दी, कत्था, राल और विदंग जैसे कई दुर्लभ जड़ी बूटियों का समावेश है जो की आयुर्वेद और वैज्ञानिक पद्धति द्वारा कई स्तर के परीक्षणों के बाद तैयार की गयी है। यह दवा पूरी तरह से आयुर्वेदिक और आयुष द्वारा प्रमाणित है जिसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
इस दवा से महज़ 3 दिनों में ही आराम मिलना शुरू हो जाता है और ज्यादातर (90% ) केसेस में 3 महीने में पूरी तरह से समस्या ठीक हो जाती है। 3RD स्टेज तक के पाइल्स (खूनी व बादी), फिसर और भगन्दर (फिस्टुला) के केस पूरी तरह से इस दवा से ठीक होते हैं।
डाइट:
- ज्यादा से ज्यादा सब्जियों का सेवन करें। हरी पत्तेदार सब्जी खाएं। मटर, सभी प्रकार की फलियां, तोरी, टिंडा, लौकी, गाजर, मेथी, मूली, खीरा, ककड़ी, पालक।
- कब्ज से राहत देने के लिए बथुआ अच्छा होता है।
- पपीता, केला, नाशपाती, सेब खाएं। मौसमी, संतरा, तरबूज, खरबूजा, आड़ू, कीनू, अमरूद बहुत फायदेमंद हैं।
- जिस गेहूं के आटे की रोटी खाते हैं, उसमें सोयाबीन, ज्वार, चने आदि का आटा मिक्स कर लें। इससे आपको ज्यादा फाइबर मिलेगा।
- दही, छांछ या लस्सी ले सकते हैं।
- दिन में कम से कम 3 लीटर पानी पियें।
सावधानी बरतें:
- किसी भी प्रकार की खट्टी चीजें जैसे की अचार, चटनी, नीबू , इमली आदि का सेवन बिलकुल भी न करें, जब तक आयुर्वेदिक दवा का कोर्स चल रहा है।
- ज्यादा देर तक खड़ा रहने या लम्बे समय तक बैठने से बचें।
- फास्ट फूड, जंक फूड और मैदे से बनी खाने की चीजें।
- चावल कम खाएं।
- सब्जियों में भिंडी, अरबी, बैंगन न खाएं।
- राजमा, छोले, उड़द, चने आदि।
- मीट, अंडा और मछली।
- शराब, सिगरेट और तंबाकू से बचें।
पाइल्स की चार स्टेज:
ग्रेड 1 : यह शुरुआती स्टेज होती है। इसमें कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते। कई बार मरीज को पता भी नहीं चलता कि उसे पाइल्स हैं। मरीज को कोई खास दर्द महसूस नहीं होता। बस हल्की सी खारिश महसूस होती है और जोर लगाने पर कई बार हल्का खून आ जाता है। इसमें पाइल्स अंदर ही होते हैं।
ग्रेड 2: दूसरी स्टेज में मल त्याग के वक्त मस्से बाहर की ओर आने लगते हैं, लेकिन हाथ से भीतर करने पर वे अंदर चले जाते हैं। पहली स्टेज की तुलना में इसमें थोड़ा ज्यादा दर्द महसूस होता है और जोर लगाने पर खून भी आने लगता है।
ग्रेड 3 : यह स्थिति थोड़ी गंभीर हो जाती है क्योंकि इसमें मस्से बाहर की ओर ही रहते हैं। हाथ से भी इन्हें अंदर नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में मरीज को तेज दर्द महसूस होता है और मल त्याग के साथ खून भी ज्यादा आता है।
ग्रेड 4 : ग्रेड 3 की बिगड़ी हुई स्थिति होती है। इसमें मस्से बाहर की ओर लटके रहते हैं। जबर्दस्त दर्द और खून आने की शिकायत मरीज को होती है। इंफेक्शन के चांस बने रहते हैं।
लक्षण :
- मल त्याग करते वक्त तेज चमकदार रक्त का आना या म्यूकस का आना।
- एनस के आसपास सूजन या गांठ सी महसूस होना।
- एनस के आसपास खुजली का होना।
- मल त्याग करने के बाद भी ऐसा लगते रहना जैसे पेट साफ न हुआ हो।
- पाइल्स के मस्सों में सिर्फ खून आता है, दर्द नहीं होता। अगर दर्द है तो इसकी वजह है इंफेक्शन।
कारण क्या हैं :
- कब्ज पाइल्स और फिसर की सबसे बड़ी वजह होती है। कब्ज होने की वजह से कई बार मल त्याग करते समय जोर लगाना पड़ता है और इसकी वजह से पाइल्स और फिसर की शिकायत हो जाती है।
- अधिक तला एवं मिर्च-मसाले युक्त भोजन करना, शौच ठीक से ना होना, फाइबर युक्त भोजन का सेवन न करना,महिलाओं में प्रसव के दौरान गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ने से बवासीर होने का खतरा रहता है, आलस्य या शारीरिक गतिविधि कम करना,धूम्रपान और शराब का सेवन,अवसाद।
- बवासीर को Piles या Hemorrhoids भी कहा जाता है। पाइल्स और फिसर एक ऐसी बीमारी है, जो बेहद तकलीफदेह होती है। यह एक अनुवांशिक समस्या भी है। यदि परिवार में किसी को यह समस्या रही हो, तो इससे दूसरे व्यक्ति को होने की आशंका रहती है। बहुत पुराना होने पर यह भगन्दर का रूप धारण कर लेता है जिसे फिस्टुला (Fistula) भी कहते हैं। इसमें असहाय जलन एवं पीड़ा होती है।
- ऐसे लोग जिनका काम बहुत ज्यादा देर तक खड़े रहने का होता है, उन्हें पाइल्स और फिसर की समस्या हो सकती है।
- मोटापा इसकी एक और अहम वजह है।
- कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान भी पाइल्स और फिसर की समस्या हो सकती है।
- नॉर्मल डिलिवरी के बाद भी पाइल्स और फिसर की समस्या हो सकती है।
इलाज:
अगर पाइल्स / फ़िस्सर / फिस्टुला स्टेज 1, 2 या 3 के हैं तो उन्हें आयुष द्वारा प्रमाणित 100% आयुर्वेदिक दवा पिलो सॉफ्ट कैप्सूल्स (Pilo Soft Capsule) द्वारा पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। पाइल्स के बहुत कम मामले ऐसे होते हैं, जिनमें सर्जरी की जरूरत होती है। बाकी पाइल्स दवाओं से ही ठीक हो सकते हैं। साथ ही शुरुआती स्टेज के पाइल्स में एकदम सर्जरी की ओर जाने से बचना चाहिए। इंतजार करें, दवा लें और बचाव के तरीकों पर ज्यादा ध्यान दें। ज्यादातर मामलों में एक से दो महीने तक लगातार इलाज कराने से पाइल्स की समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है। लेकिन कुछ मामलों में 3 से 6 महीने तक का भी समय लग सकता है।